उड़ते हुए हनुमान जी लंका में जा रहे है

उड़ते हुए हनुमान जी लंका में जा रहे है

उड़ते हुए हनुमान जी लंका में जा रहे है

उड़ते हुए हनुमान जी,
लंका में जा रहे है।

दोहा – बजरंग की किस्मत में,
लिखा सुबह और शाम था,
करेगा राम की सेवा,
बस यही एक काम लिखा था।
लिखने वाले ने भी,
क्या गजब का नाम लिखा था,
सीना फाड़ कर दिखा दिया,
तो सिया राम लिखा था।


उड़ते हुए हनुमान जी,
लंका में जा रहे है,
माता सिया को ढूंढकर,
डंका बजा रहे है।।


बगिया के फल को देखकर,
लगी भूख जब सताने,
माता सिया से अर्ज कर,
लगे मैया को मनाने,
आए कोई भी निशाचर,
उनको पटक रहे है,
माता सिया को ढूंढकर,
डंका बजा रहे है।।


आया मेघनाद बलधारी,
हनुमान जी से लड़ने को,
बजरंग ने ऐसा फेका उसे,
उड़ गया आसमान को,
फैलाया जाल माया का,
बजरंग को जकड़ रहे है,
माता सिया को ढूंढकर,
डंका बजा रहे है।।


हनुमान जी को बांधकर,
किया लंकापति के सामने,
बतलादे मूर्ख वनार,
लंका नगर के सामने,
मैं सेवक श्री राम का,
रावण को बता रहे है,
माता सिया को ढूंढकर,
डंका बजा रहे है।।

अंगार इसकी पूछ में,
लगवा दो जल्दी से,
फिर न दोबारा आए कभी,
लंका में गलती से,
हनुमान कूद कूद कर,
लंका जला रहे है,
माता सिया को ढूंढकर,
डंका बजा रहे है।।


उडते हुए हनुमान जी,
लंका में जा रहे है,
माता सिया को ढूंढकर,
डंका बजा रहे है।।

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